सीख
दृश्य - प्रथम
एक घर के सामने पहुंचकर एक औरत दरवाजे की घंटी बजाती है ।
घर के अंदर से आवाज आती है - मां मैं देखती हूं । एक युवती निकलती है और दरवाजा खोलती है,
आगंतुक को देखकर उसके माथे पर सिकन नजर आने लगता है, वह पूंछती है - क्या है ।
दरवाजे के बाहर खड़ी औरत भी चैंकती है और पूंछती है - तुम कौन हो ।
युवती आश्चर्य के साथ कहती है - मेरे घर में आकर मुझसे ही पूंछती हो मै कौन हूं, आप बताओ आप कौन हैं, और क्या काम है ?
बाहर
खड़ी औरत थोड़ा पीछे हटकर घर को अच्छी तरह से देखते हुए कहती है - तुम्हारा
घर ..... कल तक तो ये किसी और का था .... रात भर में इसका कैसे हो गया.
हेलो ... ये मेरा ही घर है और आज कल से नही मेरे बचपन से - वह युवती जवाब देती है ।
तभी
अंदर से एक अधेड़ औरत कुछ बुदबुदाते हुए निकलती है और दरवाजे पर खड़ी युवती
से कहती है - उसको आने दे कुसुम वो कांता है कामवाली बाई ...
ओह ...वह युवती (कुसुम) सिर हिलाते हुए कहती है,
अधेड़
औरत आंखे बड़ी करके कहना जारी रखती है - तू तो चली गई थी झंडा गाड़ने, तब
कांता ही घर की साफ सफाई और कपड़े बरतन धोती, मेरी बूढ़ी हडिडयों में अब इतनी
ताकत नही कि घर भर का काम अकेले कर सकूं ।
कुसुम मां से लिपटते हुए बोली - अब आ गई हूं न तुम्हारी ताकत बनने ....
और मेरे पेट में लात मारने ... साथ में कांता ने जवाब दिया ।
कुसुम मुस्कुराई,बोली - ऐसा क्यों कहती हो ... आओ अंदर आओ ।
कांता अजीब ढंग से घर के अंदर दाखिल हुई ।
अधेड़
औरत (कुसुम की माँ) बुदबुदाती रहती है - मेरी इतनी ही फिक्र होती तो यूं
अपनी जिंदगी खराब न करती, क्या तुझे इसीलिए इतना पढ़ाया लिखाया .... पढ़ने
में हमेशा अव्वल रहती ... दूर दूर तक कोई इतना पढ़ा लिखा नही, न ही तेरे
मुकाबले कोई होशियार ... फिर भी अपनी पढ़ाई अपने ज्ञान को स्वाहा करने की
जाने क्या सनक सवार हो गई ।
कुसुम बोली - तुम फिर शुरू हो गई माँ।
कुसुम
की माँ बोली - तो क्या करूं, पेंशन के मत्थे घर चल रहा है, और जिसे पढ़ाया
लिखाया वो योग्य होकर भी डॉक्टर, कलेक्टर या कोई बड़ा अफसर बनने की बजाए
क्या बनने का जिद की मास्टरनी, मिल गया ईनाम .... हो गया सपना पूरा
कुसुम बोली - ओफ्फो मां, अब छोडो भी ... बी पाजिटिव
कुसुम
की माँ चुप होने की बजाए बोलती रही - क्यों छोड़ूं, जानती हो कांता ये लड़की
कहती है ज्ञान बांटने के लिए है, इतने अच्छे अच्छे जॉब छोड़कर स्कूल में
पढ़ाने जाने लगी, घर बसाने की उम्र में घर छोड़कर स्कूल में डेरा डाल लिया और
मिला क्या एक बच्चे को थोड़ा सा डांट दिया तो बच्चे के अमीर मां बाप ने इसे
स्कूल से निकलवा दिया । अब हो गई् तसल्ली भर गया पेट ... ।
कुसुम
बोली - अरे मां बुरे लोग कहां नही होते, रूपयों का घमंड कुछ लोगों की
बुद्धि हर लेता है तभी तो लक्ष्मी जी की पूजा गणेश जी और सरस्वती जी के साथ
करते है जिससे बुद्धि की शुद्धि हो और ज्ञान का प्रकाश फैले, बी पॉजिटिव
मां ... बी पाजिटिव ।
हॉ मेरा है ... अचानक कांता बोल पड़ी ।
मां बेटी दोनो चैंकी एक साथ बोलीं- क्या ।
कांता बोली - वो बी पाजिटिव ... मेरा खून ... डाक्टर ने बताया था ।
कांता
का जवाब सुनकर दोनो हंसने लगीं । उन्हें हंसता देख कांता भी शर्माते हुए
हंसने का प्रयास की । तभी कुसुम की नजर कांता के पीछे छिपे एक मासूम बच्ची
पर पड़ी ।
कुसुम - अरे .... ये कौन है, ... हाऊ स्वीट ....
बच्ची घबराकर कांता के पीछे छिपने का भरसक प्रयास करती है लेकिन कुसुम उसे प्यार से अपने पास बुलाती है ।
कुसुम - मेरे पास आइये ... डरिये मत आइये ...आप तो बहुत प्यारी हो ..... जरा छूकर देखें कहीं आप परीलोक की सुंदर परी तो नही ...
कांता
उस बच्ची को कुसुम के पास जाने को उत्साहित करती है, और कुसुम से कहती है -
आपको पहली बार देख रही है इसलिए थोड़ा डर रही है ..... जाओ बिटिया
मासूम
बच्ची घबराते हुए धीरे धीरे कुसुम के पास आती है । कुसुम उससे हाथ मिलाते
हुए, अपने गले लगा लेती है, फिर पूँछती है - क्या नाम है आपका
मासूम बच्ची अचरज से तीनों को देखती है । उसकी हालत देखकर कांता कहती है - हम इसे बिटिया कहके बुलाते हैं
कुसुम
और उसकी माँ चैंकती हैं, कुसुम कहती है - ये कैसा नाम ..... ठीक है आपकी
बिटिया है तो आप इसे बिटिया कहती हैं लेकिन दूसरे लोग इसे किस नाम से
बुलाएँ ये तो सोचा होगा ...
कांता हतोत्साहित भाव से जवाब देती है - अभी तो ये छोटी है, बड़ी होगी तो फिर सोंचेगे कोई नाम ..
कुसुम - फिर स्कूल में क्या नाम लिखवाई हैं ... यही बिटिया ... ?
कांता - स्कूल वगैरह ... हम गरीबों के नसीब में कहाँ
कुसुम
चौंकते हुए - क्या .... आप क्या कह रही हो, ...... आपने बच्ची का किसी
स्कूल में एडमीशन नही करवाईं .... आप इस छोटी से बच्ची का भविष्य खराब करना
चाहती हैं ?
कांता - गरीबों का क्या भविष्य ....करना तो मजदूरी
ही है .... बड़ी होकर ये भी मेरी तरह कहीं झाड़ू पोंछा करेगी तो दो जून की
रोटी मिलेगी ।
कुसुम - आप इस बच्ची को भी अपनी तरह गरीबी,
बीमारी, लाचारी की जिंदगी देना चाहती हैं ..... कैसे समझाऊँ मैं आपको ....
बच्चों का भविष्य माँ बाप के हाथों में ही होता है, वे जैसा चाहें बच्चों
को वैसा बना सकते हैं ......
कांता - मेरे चाहने भर से क्या होगा
..... स्कूल भेजने की हालत में हम हैं नहीं ... अगर चाहूँ भी तो अपनी
बिटिया का भविष्य नही बना सकती .....
कुसुम - आप माँ हो और माँ ही जीवन देती है .... माँ ही बच्चों का जीवन बना या बिगाड़ सकती है ...
कांता
को असमंस में देख कुसुम बोलती है - हमारे देश की कितनी माँ ओं की सीख से
हमारे देश को महापुरूष मिले, हमारे देश ही क्या दुनिया भर में जो भी महान
व्यक्ति हुए हैं सभी के पीछे माँ ही थीं, चलिए मैं आपको एक माँ और बच्चे की
सच्ची कहानी सुनाती हूँ ...
दृश्य - द्वितीय
एक बच्ची घड़ी बनकर आती है, हाथ को सुई की उल्टी दिशा में घुमाकर भूतकाल में ले जाती है ।
(पार्श्व में कुसुम की आवाज सुनाई पड़ती है । - एक स्कूल के अंदर एक कक्षा में ....)
कुछ
बच्चे धमाचैकड़ी कर रहे हैं । एक बच्चा एक कटोरी में कुछ लेकर आता है और
दूसरे बच्चे को उसे खाने का इशारा करता है । दूसरा बच्चा इशारे से पूँछता
है - ये क्या है ?
पहला बच्चा हाव भाव के साथ - इसे खाकर तुम उड़ सकोगे ।
दूसरा बच्चा हैरानी के साथ जवाब देता है - सचमुच । पहला बच्चा स्वीकृति में सिर हिलाता है ।
दूसरा बच्चा उस चीज को खाता है और अजीब सा मुँह बनाता है और कुछ देर उड़ने का इंतजार करता है, फिर निराश होकर कहता है - कब उडूँगा ?
पहला बच्चा जमीन पर झुककर उसके पैर देखता है कि शायद उसके पैर ऊपर उठ रहे हों, फिर कहता है - थोड़ा और कीड़े खाओ ....
दूसरा
बच्चा हडबड़ाकर कहता है - कीडे़ - और वह उल्टी करने का प्रयास करते हुए
झल्लाते हुए कहता है - तुमने मुझे कीड़े खिला दिया .... मुझे घिन आ रही है
....
पहला बच्चा कहता है - मैने चिड़ियों को देखा है वो कीड़े खातीं हैं तभी तो उड़ पाती हैं, तुम थोड़ा और खाकर देखो जरूर उड़ने लगोगे ...
दूसरा बच्चा घबराकर भागते हुए चिल्लाता है - नही ..... मैम बचाओ ....
घड़ी वाली लड़की टिक टिक करते हुए एक तरफ से दूसरे तरफ जाती है ।
दृश्य - तृतीय
(पार्श्व में कुसुम की आवाज सुनाई पड़ती है । - वही कीडे़े खिलाने वाला बच्चा अपने घर में जब अपनी माँ के पास पहुंचता है, तब ....)
उसकी माँ उसे देखकर बड़े लाड़ से बुलाती है - आओ बेटे .... कैसा रहा आज का स्कूल डे ....
बच्चा - टीचर ने ये लेटर दिया है और कहा है अपनी माँ को दे देना
माँ
वह लेटर लेकर पढ़ती है, घबराती है और उसके आँख में आँसू आ जाते हैं । यह
देखकर बच्चा घबरा जाता है सहमते हुए पूँछता है - क्या हुआ माँ आप क्यों रो
रही हैं ?
माँ आँसू पोछते हुए - तुम्हारी टीचर ने लिखा है, आपका
बच्चा बहुत होशियार है, बुद्धिमान है, और वो स्कूल छोटे लेवल का है, उनके
पास अधिक योग्यता के शिक्षक भी नही हैं इसलिए वो तुम्हारी पढ़ाई कराने के
काबिल नही हैं ....
बच्चा - मैं इतना होशियार हूँ ....अब मुझे स्कूल में नहीं पढ़ना पड़ेगा .... फिर मैं कहाँ पढूंगा ?
माँ - मैं पढ़ाऊँगी ..... मैं तुम्हें सब कुछ पढ़ाऊँगी
यह सुनकर बच्चा खुश हो जाता है ।
घड़ी वाली लड़की टिक टिक करते हुए एक तरफ से दूसरे तरफ दौड़ती जाती है ।
दृश्य - चतुर्थ
अंधेरा ........
(पार्श्व
में कुसुम की आवाज सुनाई पड़ती है । - अपने अवलोकन एवं माँ के पढ़ाये गये
ज्ञान के साथ बड़ा होता वह बच्चा जब तब एक्सपेरिमेंट कर कुछ नया करने का
प्रयास करता और धीरे धीरे कई अविष्कार कर डालता है, दुनिया को पहली बार
रोशनी देने वाला बल्ब (मंच में बल्ब का जलना) मिलता है । दुनिया भर में
उसकी ख्याति फैल जाती है और दुनिया उसे एडीसन अल्वा के नाम से पहचानने लगती
है ...... एक दिन खाली समय में वही बच्चा जो अब प्रसिद्ध वैज्ञानिक बन
चुका है अपने कमरे में माँ की पुरानी चीजों को देख रहा था)
एडीसन एक पुरानी संदूक से कुछ चीजों को निकालकर बड़े चाव से देखता है - मेरी प्यारी माँ की निशानी ... आई लव यू माँ ....
तभी
उसे एक पुराना लेटर मिलता है उसे देखकर एडीसन - अरे ये तो वही लेटर है जो
मुझे बचपन में अपनी स्कूल में मिला था ..... मेरी स्कूल जिन्होने माना कि
मै कितना होशियार हूँ ....
एडीसन मुस्कुराते हुए वह पत्र पढ़ता है
- आपका पुत्र बौद्धिक रूप से कमजोर है, उसे कम सुनाई पड़ता है और वह स्कूल
की पढ़ाई ठीक से समझ भी नही पाता, बहुत समझाने एवं कोशिशों के बाद भी उसे
पढ़ा पाना अब स्कूल के बस की बात नही, कृपया उसे स्कूल न भेजें ........
एडीसन
की आँखों में आँसू बहने लगते हैं बिलखते हुए - माँ आपने उस दिन कहा था कि
मैं बहुत होशियार हूँ इसलिए मुझे पढ़ा पाने में स्कूल अक्षम था लेकिन ....
लेकिन मैं कितना गलत था .... अगर उस दिन आप मुझे सच बता देंती तो शायद मैं
कभी आगे नही बढ़ पाता ... हार और निराश के दलदल में फंस जाता .... आपकी वह
सकारात्मक सोच और प्रयास का ही परिणाम है जो आज मैं दुनिया भर में लोकप्रिय
हूँ .....माँ तुमने केवल मुझे जन्म ही नही दिया बल्कि मेरा भविष्य भी
जन्मा है .... तुम महान हो माँ ... तुम महान हो ...
घड़ी वाली लड़की धीरे धीरे (लाईट के साथ) टिक टिक कर एडीसन की ओर से कुसुम एवं कांता की तरफ आती है
दृश्य - पंचम
सन्नाटा और सभी की नम आँखें ।
कुसुम
- मैने कहा था माँ ही बच्चे का जीवन बना सकती है, अब बताओ आप क्या अब भी
आप सोचती हैं कि आपकी बिटिया को जिंदगी में आगे नही बढ़ना चाहिए
कांता
- नही नही ... आप ठीक कह रही हो ... मैं भी अपनी बिटिया को पढ़ाऊंगी उसे भी
सफल बनाऊँगी ... लेकिन (ठहरकर कुछ सोचते हुए) मैं तो अनपढ़ हूँ भला मैं
कैसे अपनी बिटिया को पढ़ा पाऊँगी, कैसे उसे बड़ा इंसान बना पाऊँगी ....
कुसुम
- मैं हूँ न ..... (बैकग्राउंड में मैं हूँ न की धुन) ..... मैं आपकी
बिटिया को पढ़ाऊँगी और इस लायक बनाऊँगी कि आप को इस पर गर्व होगा ... आज से
बल्कि अभी से इसकी पढ़ाई की पूरी जिम्मेदारी मेरी...
कांता भाव विहवल होकर हाथ जोड़ती है, कुसुम उसके हाथों को थामकर कहती है - लेकिन पहले मुझे बिटिया का एक नाम रखना होगा ...
कांता - अब आप ही इसकी माँ और गुरू हैं आप ही अच्छा सा नाम रख लीजिए
कुसुम - तो फिर कांति कैसा रहेगा, कांता की कांति, और कांति मतलब होता सौंदर्य, चमक, उजाला
कांता - बहुत अच्छा नाम है, हम आज से इसे कांति कहकर पुकारेंगे
कुसुम - ठीक है, चलो कांति अब पढ़ाई करें
दृश्य - षष्ठम
कुसुम कांति को पढ़ा रही है। और उसकी कापी देखकर कहती है - अरे वाह! तुमने तो ये सवाल झटपट हल कर दिया
कांति - फटाक से
कुसुम हंसते हुए - हाँ हाँ एमदम फटाक से
थोड़ा ठहर कर, कुछ सोचते हुए कांति - टीचर जी, मैं एक सवाल पूँछू
कुसुम - हाँ पूँछो
कांति
- आसमान में कितने तारे हैं, ........ हवाई जहाज आसमान में कैसे उड़ता है,
....... पानी में नाव डूबती क्यों नहीं ...... डायनासोर कहां गये ?
कुसुम (हंसते हुए) - ये एक सवाल है ... या अनेक सवाल
कांति - हमारे खून का रंग लाल क्यों होता है, ..... पत्तियाँ हरी क्यों होती हैं .... सिर के बाल काले क्यों होते हैं
कुसुम - बताती हूँ बाबा, सब के जवाब बताती हूँ ...
कुसुम
की माँ बडबड़ाते हुए वहाँ से गुजरती है - ऐसा लगता है जैसे ये घर न हुआ,
कोई पाठशाला हो ... दिन भर ... बल्कि रात को सोने तक आस पड़ोस .... मोहल्ले
भर के गरीब बच्चों को पढ़ाई में ये लड़की ऐसे जुटी है जैसे सांस ले रही हो
.....और ये देखकर मेरी तो सांस फूली जा रही है ...
घड़ी वाली लड़की
धीरे धीरे आगे बढ़ती है फिर कुसुम की माँ के चक्कर लगाती है और कुसुम की
माँ तेजी से सांसे लेती है, शनैः शनैः घड़ी दूर चली जाती है । मंच पर अंधेरा
हो जाता है ।
दृश्य - सप्तम
मंच पर प्रकाश होता है ।
मंच की एक ओर घड़ी वाली लड़की शांत खड़ी है और धीरे धीरे टिक टिक कर रही है । कुसुम और कांता एक साथ प्रवेश करती हैं ।
कुसुम - ये घड़ी भी आज कितना धीरे चल रही है
कांता
- हाँ .... ये घड़ी बस टिक टिक कर रही है, जल्दी जल्दी आगे नहीं बढ़ती ...
आज मेरी लाड़ली को ईनाम मिलने वाला है, मुझे उसे टी.वी. पर देखना है
कुसुम - हम सब उस घड़ी का इंतजार कर रहे हैं जब पूरी दुनिया के सामने हमारी कांति को नोबल पुरस्कार मिल रहा होगा ।
कुसुम की माँ - अरे कुसुम टी.वी. तो चलाओ कांति का दुनियाभर में सम्मान हो रहा है हमे भी देखना है उसे
कुसुम - हाँ माँ हम सभी उसी लम्हे का इंतजार कर रहे हैं
कुसुम टीवी चालू करती है ।
(टी.वी.
पर भीड़ जमा है सभी ताली बजा रहे हैं और कांति को नोबल पुरस्कार मिलता है,
टी.वी. - आज फिर एक बार दुनिया में भारत का नाम रौशन हुआ, भारत की एक लाड़ली
ने ऐसी मशीन बनाया जिससे हम दुनिया में कहीं भी, कभी भी मात्र कुछ सेकेण्ड
में आ जा सकते हैं, तकनीक पर आधारित लिविंग बाॅडी ट्राँसपोर्टेशन का यह
अनोखा अविष्कार दुनियाभर का सबसे बड़ा परिवर्तन माना जा रहा है, अब एक जगह
से दूसरी जगह आवागमन एक चुटकी में किया जा सकता है . यह देखकर तीनों की
आँखें खुशी से नम हो जाती हैं, और चेहरे पर गर्व के भाव उभरते हैं । अचानक
टी.वी. पर ब्रेकिंग न्यूज आती है ।
टी.वी. एंकर - अभी अभी खबर
मिली है कि नोबल पुरस्कार प्राप्त करने के बाद जब भारत की होनहार वैज्ञानिक
कांति ने अपनी मशीन का डिस्प्ले करना चाहा तो वे समारोह स्थल से गायब हो
गईं । चारो तरफ अफरा तफरी का माहौल है कि आखिर वो युवा वैज्ञानिक गईं कहां ?
बने रहिये हमारे साथ हम आपको पल पल की खबरों से वाकिफ कराते रहेंगे ।
कांता - हे राम मेरी बिटिया कहाँ गायब हो गई, क्या हो गया उसे ....
तभी कांति वहाँ प्रकट होती है ।
कांति - उसे कुछ नही हुआ माँ, आपकी लाड़ली आपके सामने है ....
तीनों चौंक कर उसे देखते हैं ।
कांति
- आज पूरी दुनिया के सामने मेरा सम्मान हो रहा है मुझे नोबल पुरस्कार मिला
लेकिन, इस पर पहला हक तो उनका है जिनके कारण आज मैं इस मुकाम तक पहुँची,
मेरी गुरू माँ ....
कांति कुसुम के पैर छूती है - आज मैं जो कुछ
भी हूँ, आपके दिये ज्ञान एवं सिखाए गये उन हर बातों का ही परिणाम है, इस
नोबल पुरस्कार की हकदार मैं नहीं आप है गुरू माँ ....
कुसुम की
माँ रूंधे गले से - मैं हमेशा सोचती थी शिक्षक बनकर इसने अपना जीवन तबाह कर
लिया लेकिन आज पता चला कि शिक्षक तो हजारों जीवन बनाते हैं और समाज को वो
होनहार प्रदान करते हैं जिससे पूरे विश्व में सकारात्मक परिवर्तन देखने को
मिलता है
कांति - ठीक कहा आपने, माँ बच्चे को जन्म देती है और
शिक्षक उस जन्म को सफल बनाते हैं, देखिए मेरी गुरू माँ ने अपने आस पड़ोस
गाँव शहर के कितने बच्चों का जीवन सफल बना दिया, उनकी शिक्षा से आज कोई
डाॅक्टर है तो कोई इंजीनियर, कोई कलेक्टर है तो कोई बड़ा अफसर .... शिक्षक
इतने सक्षम हैं कि स्वयं बड़े पदों पर सफलता हासिल कर सकते हैं लेकिन स्वयं
की बजाए वे सैकड़ों हजारो बच्चों को उसी मुकाम तक पहुँचकार समाज और देश ही
नही दुनिया का कितना भला कर रहे हैं, मानवता को सकारात्मक परिवर्तन प्रदान
करने वाले शिक्षकों को हमारा नमन है ।
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